बुधवार, 8 मार्च 2017

युगांडा का जिंजा शहर : जहां बसते है गांधी जी के प्राण

  My Rwanda-Uganda visit with Vice President: One       जैसा कि आप सभी जानते ही हैं कि मुझे उपराष्ट्रपति श्री मो हामिद अंसारी जी के साथ 19-23 फरवरी 2017 तक अफ्रीकी देशों Rwanda और Uganda की यात्रा का सुअवसर मिला।मैं प्रयास करूंगा कि इस यात्रा के किस्सों, इन देशों की खूबसूरती एवं खूबियों से आपको रूबरू कराऊं।फिलहाल शुरुआत जिंजा में महात्मा गांधी की प्रतिमा से।नील नदी के उद्गम स्थल पर 1997 से स्थापित यह प्रतिमा यहां भारतीयता के साथ साथ शांति और सद्भाव की भी परिचायक है। यहां इसकी देखभाल की जिम्मेदारी बैंक आफ बड़ौदा ने संभाल रखी है। खास बात यह है कि यहीं नील नदी के उद्गम स्थल पर महात्मा गांधी की इच्छा के मुताबिक उनकी अस्थियां भीं विसर्जित की गई थी। जिंजा, राजधानी कंपाला से करीब 81किमी दूर है और भारतीय लोगों का गढ़ है। यहां के सबसे धनी लोगों में माधवानी समूह(अभिनेत्री मुमताज वाला),जय मेहता (मिस्टर जूही चावला) और रूपारेलिया समूह है जो तीनों भारतीय हैं।
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स्टेट हाउस यानि युगांडा में सत्ता का शक्तिशाली गढ़

                                 
My Rwanda-Uganda visit with Vice President: Two        ये है युगांडा के राष्ट्रपति का आधिकारिक निवास यानि स्टेट हाउस (State House) या राष्ट्रपति भवन...वैसा ही जैसा दिल्ली में हमारा राष्ट्रपति भवन है या फिर अमेरिका का व्हाइट हाउस. राजधानी कम्पाला(Kampala) से लगभग 37 किलोमीटर दूर एंटेबे (Entebbe) शहर में बना यह स्टेट हाउस तक़रीबन साढ़े 17 हजार वर्गमीटर में फैला है. अन्य देशों से आने वाले मेहमानों का स्वागत यहीं किया जाता है. हाल ही में 22-23 फरवरी के दौरान हमारे उपराष्ट्रपति श्री मो हामिद अंसारी युगांडा गए थे हमें भी इस स्टेट हाउस को अन्दर से देखने का मौका मिला. इस झक सफेद इमारत का निर्माण हमारे राष्ट्रपति भवन (पहले वाइसराय भवन) की तरह ब्रिटिश हुकूमत ने कराया था. तब एंटेबे  ही युगांडा की राजधानी थी. युगांडा को 1966 में आज़ादी मिली और तब से यह यहाँ के राष्ट्रपति का स्थायी आवास और सत्ता का आधिकारिक केंद्र है. चूँकि एंटेबे में ही युगांडा का अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है इसलिए कम्पाला के राजधानी बनने के बाद भी एंटेबे शहर का महत्व बना हुआ है. वैसे युगांडा में एक से ज्यादा स्टेट हाउस हैं लेकिन फिलहाल सत्ता की धुरी यही भवन है.

युगांडा के प्रथम राष्ट्रपति सर एडवर्ड मुतिसा (Sir Edward Muteesa) ने यहाँ रहना पसंद नहीं किया क्योंकि वे अपने महलों का मोह नहीं छोड़ पाए. इसीतरह युगांडा के सबसे चर्चित राष्ट्रपति ईदी अमीन (Idi Amin) ने भी 1971 की शुरुआत में तो इसका इस्तेमाल किया लेकिन बाद सुरक्षा के लिहाज से वे भी 1976 में इस सरकारी आवास को छोड़कर चले गए. बाद के राष्ट्रपतियों ने भी स्टेट हाउस की उतनी कद्र नहीं की लेकिन मौजूदा राष्ट्रपति योवेरी के मुसेवनी (Yoweri K Museveni) ने न केवल इसको अपना आधिकारिक आवास बनाया बल्कि इसकी साज-संवार भी की. स्टेट हाउस को महज 1584 वर्गमीटर से बढ़ाकर साढ़े 17 हजार वर्गमीटर तक फैलाने का श्रेय भी उन्हें ही जाता है. यहाँ के सम्मलेन कक्ष में एक साथ 500 मेहमान बैठ सकते हैं. इसके अलावा, स्टेट हाउस परिसर में प्रथम महिला (First Lady) का निवास, राष्ट्रपति के सलाहकारों के घर, सुरक्षा भवन, संचार भवन, कई सम्मलेन कक्ष, अतिथि कक्ष, मनोरंजन कक्ष और हेल्थ क्लब भी है. यह खूबसूरत भवन अब युगांडा की पहचान और सत्ता का प्रतीक है. स्टेट हाउस हमारे उपराष्ट्रपति के अलावा ब्रिटेन की महारानी सहित कई दिग्गजों की मेजबानी कर चुका है.

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गुरुवार, 24 नवंबर 2016

नोटबंदी के बाद मीडिया में आ रही निराशाजनक ख़बरों के बीच रोशनी की किरणें बन रही........ असल किरदारों की सच्ची कहानियां

 एक: रणविजय महज 22 साल के हैं और सिविल इंजीनियर होने के बाद भी पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण सिलचर (असम) में अपने पैतृक फल व्यवसाय में पिता का हाथ बंटाते हैं. जब उन्होंने 8 नवम्बर के बाद आम लोगों को छोटे नोटों के लिए जूझते/मारामारी करते देखा तो खुद के पास मौजूद 10 हज़ार मूल्य के सौ-सौ के नोट लेकर खुद ही बैंक पहुँच गए और बदले में बड़े नोट ले आए. इतना ही नहीं, फिर इन्होने अपने आस-पास के फल व्यवसायियों को समझाना शुरू किया और चार दिन बाद ही स्टेट बैंक की लाइन में नोट बदलने के लिए लगे सैंकड़ों लोगों की तालियों के बीच उन्होंने 50 हज़ार के छोटे नोट बैंक को सौंपे...अब वे इस राशि को और बढ़ाने की योजना में जुटे हैं....सलाम रणविजय 

दो: प्रमोद शर्मा युवा व्यवसायी हैं और सिलचर के व्यापारिक क्षेत्र गोपालगंज में रहते हैं. नोटबंदी/बदलाव के बाद,वे रोज देखते थे कि आम लोग दो हज़ार का नया नोट लेकर छुट्टे पैसे के लिए यहाँ-वहां भटक रहे हैं और अपने लिए जरुरी सामान भी नहीं खरीद पा रहे. उन्होंने राजू वैद्य,शांति सुखानी और अबीर पाल जैसे अपने अन्य दोस्तों से सलाह मशविरा किया और जुट गए आम लोगों को बैंक के अलावा छोटे नोट उपलब्ध कराने में. पहले दिन उन्होंने 1 लाख रुपए के छोटे नोट बांटे लेकिन यह राशि आधे घंटे में ही ख़त्म हो गयी क्योंकि दो हजार के नोट ज्यादा थे और खुल्ले पैसे कम. दूसरे दिन युवा व्यवसाइयों की इस टीम ने 12 लाख के छोटे नोट जुटा लिए और सैकड़ों लोगों की मुश्किल हल कर दी. अब इनका लक्ष्य 20 लाख रुपए जुटाना है. छोटे नोट जुटाने के लिए ये इलाके के अन्य व्यापारियों, बिग बाज़ार- विशाल जैसे बड़े प्रतिष्ठानों की मदद लेते हैं. ‘बूंद बूंद से घड़ा भरता है’ और फिर भरे हुए घड़े का मीठा-ठंडा पानी कई लोगों की प्यास बुझा देता है.

इन युवाओं की कहानियाँ बताती हैं कि मामूली प्रयासों से भी बड़े बदलाव लाये जा सकते हैं और पहाड़ जैसी कठिनाइयों का हल भी समझ-बूझ से निकला जा सकता है. यदि हम भी सोशल मीडिया में दिन-रात व्यवस्था को कोसते रहने के बजाए अपने स्तर पर इसीतरह की पहल करें तो कई लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं. कुछ नहीं, तो बस हमारे आस पास मौजूद ऐसे सच्चे और अच्छे किरदारों को खोज निकाले और उनकी कहानी अन्य लोगों तक पहुंचाए....शायद इससे कुछ और लोगों को प्रेरणा मिले और अच्छाई की इस चेन/श्रृंखला में नई कड़ियाँ जुड़ती जाएँ. बस जरुरत पहल करने की है तो शुरुआत आज और अभी से ही क्यों नहीं..

अलौलिक के साथ आधुनिक बनती अयोध्या

कहि न जाइ कछु नगर बिभूती।  जनु एतनिअ बिरंचि करतूती॥ सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी॥ तुलसीदास जी ने लिखा है कि अयोध्या नगर...