शुक्रवार, 4 दिसंबर 2015

पूर्वोत्तर में एचआईवी-एड्स: इलाज से ज्यादा प्रभावी है जागरूक मीडिया

देश में एड्स और एचआईवी के मसले पर चर्चा हो और पूर्वोत्तर के राज्यों का जिक्र न हो तो यह बात अधूरी रहेगी क्योंकि यहाँ के कुछ राज्य एचआईवी संक्रमण के मामले सर्वाधिक ज़ोखिम वाली श्रेणी में हैं. हालाँकि, पूर्वोत्तर का सबसे बड़ा राज्य असम यहाँ के अन्य राज्यों की तुलना में इस बीमारी के फैलाव के लिहाज से काफी पीछे है लेकिन फिर भी पूर्वोत्तर का प्रवेश द्वार या गेटवे होने के कारण जोख़िम के मुहाने पर तो है ही. इसलिए जागरूक मीडिया की भूमिका यहाँ काफी अहम् हो जाती है. खासतौर पर सरकारी और पारंपरिक मीडिया इस बीमारी के प्रति आम लोगों को सावधान एवं सतर्क करने में महत्वपूर्व साबित हो सकता है.
इन दिनों पूर्वोत्तर में सबसे बड़ी चिंता भी यही है कि अब तक एचआईवी संक्रमण के मामले में सुरक्षित माने जा रहे राज्य असम में भी अब यह बीमारी धीरे धीरे अपने पैर फैला रही है और वह भी तब जब, एक ओर जहाँ एड्स के सर्वाधिक मामले वाले राज्यों जैसे मणिपुर, मिजोरम और नागालैंड में संक्रमण कम हो रहा है वहीँ असम में संक्रमण बढ़ रहा हैं. आलम यह है कि असम और इसके पडोसी राज्य त्रिपुरा का नाम अब पूर्वोत्तर के सर्वाधिक जोख़िम वाले राज्यों में शामिल हो गया है. असम प्रदेश एड्स नियंत्रण सोसायटी द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक असम में करीब शून्य दशमलव शून्य सात फीसदी की रफ़्तार से यह बीमारी फ़ैल रही है. वैसे तो ये आंकड़ा राष्ट्रीय औसत शून्य दशमलव सत्ताइश फीसदी से काफी कम है लेकिन बीते कुछ सालों में इसमें चिंताजनक रूप से शून्य दशमलव शून्य तीन फीसदी की बढ़ोत्तरी देखी गयी है. राज्य में एचआईवी प्रभावित लोगों की संख्या 12 से 15 हजार तक पहुँच गयी है जबकि 2007  में मात्र एक हजार 219  लोग ही संक्रमित  थे. 2008 में भी संक्रमित लोगों कि संख्या में कोई उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी नहीं देखी गयी और यह बढ़कर महज एक हजार 428 तक ही पहुंची. 2010 में जरुर संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़कर दोगुनी हो गयी. इस साल एचआईवी-एड्स के मरीजों कि संख्या दो हजार 14 दर्ज की गयी लेकिन तीन साल के दरम्यान ही इस बीमारी से संक्रमित लोगों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज की गयी. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 2011 में मरीजों की संख्या आश्चर्यजनक रूप से बढ़कर 12 हजार 804 हो गयी है. एक और उल्लेखनीय तथ्य यह है कि असम में एचआईवी-एड्स से संक्रमित मरीजों की संख्या सबसे ज्यादा कामरूप जिले में है यहाँ अब तक चार हजार 268 मामले सामने आये हैं. बताया जाता है सिर्फ कामरूप जिले में ही एचआईवी संक्रमण के मामलों में 38 प्रतिशत की उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी हुई है. इसके बाद बराक घाटी के कछार जिले का नंबर आता है जहाँ दो हजार 413 मरीज सामने आये हैं. इसके विपरीत राज्य के चिरांग जिले में एड्स का एक भी मरीज नहीं है. इसे हम एचआईवी-एड्स मुक्त जिला कह सकते हैं.
राज्य में इस बीमारी के बढ़ने के कारणों को लेकर अलग अलग राय हैं.कुछ जानकार इसे मुक्त या स्वतंत्र जीवन शैली का नतीजा मानते हैं. इसतरह की राय रखने वाले लोगों का मानना है कि गुवाहाटी के महानगर में तब्दील होने के कारण यह महानगरीय अपसंस्कृति के दुष्प्रभाव भी पैर पसार रहे हैं मसलन लिव-इन में रहना, समलैंगिक सम्बन्ध, जीवनसाथी से विश्वासघात जैसे मामले बढ़ रहे हैं. प्रेम संबंधों में अविश्वास, ईर्ष्या-द्वेष, बेरोजगारी,काम के बढ़ते दबाव जैसे एनी कारणों ने भी लोगों में असुरक्षा का भाव बढ़ा दिया है.इसके फलस्वरूप में नशीले पदार्थों के दलदल में फंस रहे हैं और संक्रमित लोगों के संपर्क में आने से बिमारी का विस्तार भी हो रहा है. हालांकि, असम प्रदेश एड्स नियंत्रण सोसायटी का कहना है कि राज्य में इस बीमारी का संक्रमण बढ़ने का कारण यह है कि असम और खासतौर पर इसका कामरूप जिला पूर्वोत्तर का प्रवेश द्वार है. यहाँ देश के विभिन्न हिस्सों के लोगों का रोजगार के लिए आना जाना लगा रहता है. इसके अलावा मणिपुर-मिजोरम जैसे राज्यों से भी बड़ी संख्या में लोग यहाँ आते हैं. वहीँ नेपाल और पश्चिम बंगाल से भी पलायन कर लोग यहाँ आ रहे हैं. इतनी बड़ी मात्रा और विविधता भरे पलायन के कारण किसी भी बिमारी से संक्रमित व्यक्ति की पहचान करना आसन नहीं है और इसपर यदि प्रभावित व्यक्ति ही अपनी बीमारी को छिपाने लगे तो पहचान करना और भी मुश्किल हो जाता है.
वैसे,एचआईवी संक्रमण के बढ़ते मामलों के मद्देनजर एड्स नियंत्रण सोसायटी ने चरणबद्ध तरीके से इसकी रोकथाम के प्रयास शुरू कर दिए हैं और केंद्र सरकार के दिशा निर्देशों के अनुरूप जागरूकता अभियान भी चलाया जा रहा है. सोसायटी ने लोगों को जागरूक बनाने और सुरक्षित यौन संबंधों का महत्व बताने पर खास ध्यान दिया है. इसके अलावा संक्रमित लोगों के मानवाधिकारों की रक्षा और उनके साथ किसी भी तरह के भेदभाव को रोकने पर खास ध्यान दिया जा रहा है. दरअसल संक्रमित व्यक्ति को समाज से अलग-थलग कर देने के दुष्परिणाम भी सामने आये हैं इसलिए अब तो केंद्र सरकार भी इस सम्बन्ध में कानून बनाने जा रही है. इस कानून के अंतर्गत संक्रमित व्यक्ति के साथ किसी भी तरह का भेदभाव करने वाले लोगों के लिए दोष साबित हो जाने पर 10 हजार रुपये तक का जुर्माना और दो साल तक की सज़ा का प्रावधान होगा. सोसायटी को उम्मीद है कि इसतरह के तमाम प्रयासों के जरिये जल्दी ही राज्य में एचआईवी-एड्स की रोकथाम के लक्ष्य को हासिल किया जा सकेगा.
जानकार भी इस बात को भली भांति जानते हैं और स्वीकार भी करते हैं कि असम क्या समूचे पूर्वोत्तर में मीडिया एचआईवी-एड्स के प्रति जागरूकता फैलाने में अहम् साबित हो सकता है लेकिन इसके पहले मीडिया को खुद जागरूक होने और इस दिशा में ईमानदार पहल करने की जरुरत है. मीडिया की जागरूकता से आशय यह है कि सर्वप्रथम यहाँ के पत्रकारों को इस बीमारी के प्रति संवेदनशील बनाया जाए तभी वे समाज को जागरूक बनाने के लिए अपनी ‘कलम’ या ‘बाईट’ का बखूबी इस्तेमाल कर पायेंगे क्योंकि ग्रामीण अंचलों में काम करने वाले आंचलिक पत्रकार या क्षेत्रीय संवाददाता अन्य राज्यों के अपने समकालीन साथियों की तुलना में उतने जागरूक नहीं है. वहीँ, इसके उलट एक तथ्य यह भी है कि देश के अन्य भागों की तुलना में पूर्वोत्तर में सरकारी मीडिया आज भी एक बड़ी ताकत है. खासतौर पर आकाशवाणी की पहुँच तो घर-घर तक है. बिजली की कमी और पढाई की अनिवार्यता नहीं होने के कारण रेडियो यहाँ सबसे प्रचलित माध्यम है. इसके अलावा, पूर्वोत्तर के कई राज्यों में आकाशवाणी से प्रसारित समाचारों को शहर से लेकर ग्राम पंचायतों तक में लगे सरकारी लाउडस्पीकर के माध्यम से भी प्रसारित किया जाता है इसलिए भी यहाँ आंचलिक समाचारों का महत्व राष्ट्रीय समाचारों से भी अधिक है. दूरदर्शन भी भी इन इलाकों में अच्छी पैठ है. हालाँकि शहरी क्षेत्रों में निजी चैनलों की घुसपैठ होने लगी है फिर भी विश्वसनीय समाचार माध्यमों के लिहाज से आकाशवाणी-दूरदर्शन का कोई सानी नहीं है. एचआईवी-एड्स के प्रति जागरूकता लाने में पारंपरिक मीडिया भी कारगर भूमिका निभा सकता है क्योंकि स्थानीय बोली-भाषा,स्थानीय पहनावे और स्थानीय संस्कृति के अनुरूप कार्यक्रम तैयार करने की क़ाबलियत आज भी सबसे ज्यादा पारंपरिक मीडिया में है और पूर्वोत्तर के जटिल विविधतापूर्ण सांस्कृतिक ताने-बाने में पारंपरिक मीडिया और भी प्रभावी बनकर सामने आता है. इसीतरह मोबाइल के जरिये सोशल मीडिया ने भी यहाँ अपने पैर पसारने शुरू कर दिए हैं और प्रत्यक्ष तथा व्यक्तिगत संवाद के लिहाज से सोशल मीडिया की बढती भूमिका को नकारा नहीं जा सकता.
कुल मिलकर कहने का आशय है कि यदि पूर्वोत्तर में एचआईवी-एड्स के फैलाव को रोकने के लिए वास्तविक रूप से पहल करनी है तो यहाँ काम कर रहे सरकारी-गैर सरकारी संगठनों को मीडिया को अपना पक्का साथी बनाना ही होगा क्योंकि बिना मीडिया के सहारे के पूर्वोत्तर में किसी भी मुहिम को चलाया तो जा सकता है परन्तु सफल नहीं बनाया जा सकता और एचआईवी-एड्स के मामले में किसी भी तरह की असफलता को स्वीकार करने की स्थिति में अब न तो समाज है और न ही देश.      


रविवार, 22 नवंबर 2015

आतंकवाद के बीच पत्रकारिता:कितना दबाव,कितनी निष्पक्ष

  
नागालैंड के पांच प्रमुख समाचार पत्रों ने 17 नवम्बर को विरोध स्वरुप अपने सम्पादकीय कालम खाली रखे. इनमें तीन अंग्रेजी के और दो स्थानीय भाषाओँ के अखबार हैं. समाचार पत्रों की नाराजगी का कारण असम राइफल्स का वह पत्र है जिसमें सभी समाचार पत्रों से नेशनल सोशलिस्ट कांउसिल आफ नागालैंड-खापलांग (एनएससीएन-के) जैसे आतंकवादी संगठनों के आदेशों/मांगों/निर्देशों इत्यादि से सम्बंधित वक्तव्यों को बतौर समाचार नहीं छापने को कहा गया है. असम राइफल्स का कहना है कि जिन आतंकी संगठनों को सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया है उनसे सम्बंधित समाचार प्रकाशित कर अखबार राष्ट्रीय सुरक्षा कानूनों का उल्लंघन कर रहे हैं.
वहीँ, इन अख़बारों का मानना है कि असम राइफल्स का यह पत्र मीडिया की आज़ादी के खिलाफ है और कहीं न कहीं प्रेस की स्वतंत्रता का हनन करता है. यहाँ के सबसे प्रमुख समाचार पत्र ‘नागालैंड पोस्ट’ ने सम्पादकीय कालम खाली तो नहीं रखा लेकिन इस आदेश के खिलाफ जरुर लिखा है. समाचार पत्रों के इस रुख का समर्थन नागालैंड प्रेस एसोसिएशन और यहाँ के सबसे शक्तिशाली छात्र संगठन नागा स्टूडेंट फेडरेशन ने भी किया है. सम्पादकीय कालम खाली रखने वाले समाचार पत्रों में मोरुंग एक्सप्रेस, इस्टर्न मिरर और नागालैंड पेज अंग्रेजी में जबकि कापी डेली(Capi Daily) और तिर यिमयिम (Tir Yimyim) क्रमशः स्थानीय बोली अंगामी तथा आओ में प्रकाशित होते हैं. वैसे असम राइफल्स ने इसतरह के किसी भी आदेश/आर्डर का खंडन किया है. उसका कहना है कि वह भी मीडिया कि स्वतंत्रता का पक्षधर है और यह एडवाइजरी समाचार पत्रों को गृह मंत्रालय द्वारा लगाए गए प्रतिबन्ध से अवगत कराने के लिए थी.
आतंकवाद प्रभावित राज्यों में अखबार निकालना तलवार की धार पर चलने से ज्यादा मुश्किल होता है क्योंकि एक ओर तो समाचार पत्र प्रबंधन को सुरक्षा एजेंसियों के कठोर नियमों का सामना करना पड़ता है वहीँ दूसरी ओर आतंकवादी संगठनों के ज्ञात-अज्ञात दबाव से भी जूझना पड़ता है. ऐसी सूरत में विज्ञापन जुटाने और प्रसार बढाने के प्रयास कितने कारगर रहते होंगे हम समझ सकते हैं. सुरक्षा एजेंसियों से जुड़े लोग तो फिर भी प्रत्यक्ष होते हैं परन्तु आतंकी संगठनों के सदस्य तो गुमनाम होते हैं इसलिए खौफ़ के बीच काम तो करना ही पड़ता है. वैसे भी दुनिया के सबसे स्वतंत्र और सुरक्षित देशों में शामिल फ्रान्स में ‘चार्ली हेब्दो’ का हाल तो हम देख ही चुके हैं. इसीतरह पड़ोसी देश बंगलादेश में आये दिन ब्लागरों की हत्याएं भी यह साबित करने के लिए पर्याप्त हैं कि मीडिया की स्वतंत्रता पर कैसा खतरा मंडरा रहा है.   
समाचार एजेंसी ‘आइएएनएस’ की एक खबर के मुताबिक इस साल जून माह तक ही दुनिया भर के 24 देशों में 71 पत्रकार मारे गए हैं. चिंताजनक बात तो यहाँ है कि काम के दौरान पत्रकारों की मौत के मामले में 7 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है. वहीँ, ‘इंटरनेशनल प्रेस इंस्टीट्यूट’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2013 में दुनिया भर में कुल 117 मीडिया कर्मी मारे गए थे जिनमें से 11 की मौत भारत में हुई. इसीतरह  2014 में 138 पत्रकार मारे गए थे. पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कार्यरत संगठन ‘कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स’ के अनुसार 1992 से अब तक दुनिया भर में 1152 पत्रकार मारे गए हैं. यह संख्या उन पत्रकारों की है जिनकी मौत के सही कारणों का पता चल गया है अन्यथा गुमनाम कारणों और हादसों का रूप देकर पत्रकारों की हत्या की संख्या तो और भी ज्यादा होगी. ‘कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स’ के अनुसार अब तक काम के दौरान हुई पत्रकारों कि कुल मौतों में सर्वाधिक 533 की मौत राजनीतिक कारणों से और 435 की मौत युद्ध जैसी घटनाओं को कवर करने के दौरान हुई है. बाकी पत्रकारों की मृत्यु का कारण भ्रष्टाचार,अपराध और मानवाधिकारों से जुड़े मामलों को कवर करना रहा है. इस संगठन के अनुसार 2011 में 48, 2012 में 74, 2013 में 71, 2014 में 61 तथा 2015 में अब तक 47 पत्रकारों की मौत की सही वजह का पता लगाया जा चुका है.

इसके सब के बाद भी मुद्दे की बात यही है कि क्या पत्रकारों के काम की कोई लक्ष्मण रेखा भी होनी चाहिए ? खासतौर पर इलेक्ट्रानिक मीडिया के बढ़ते प्रभाव और कई बार ख़बरों के साथ खिलवाड़ की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण पत्रकारों को सामान्य नागरिकों एवं विचारधारा विशेष से सरोकार रखने वाले लोगों की नाराजगी का सामना करना पड़ता है. हाल ही में इसतरह की कई घटनाएं सामने आई हैं जब किसी चैनल विशेष के खिलाफ गुस्से का खामियाजा उस चैनल के स्टाफ या फिर पूरी मीडिया बिरादरी को भुगतना पड़ता है. क्या अब समय आ गया है कि मीडिया बिरादरी स्वयं ही अपने लिए कोई ‘रेखा’ खींचे और उसका कठोरता से पालन करने की व्यवस्था भी बनाए क्योंकि मौजूदा व्यवस्थाएं तो बस ‘हाथी के दांत खाने के कुछ और दिखाने के कुछ’ जैसी हैं. इसीतरह किन्ही खास समूहों के मीडिया के सभी अंगों पर बढ़ते एकाधिकार पर भी चर्चा होनी चाहिए जिससे वास्तव में मीडिया स्वतंत्र रहे. इसके अलावा पेड न्यूज़,इम्पेक्ट फीचर जैसे तकनीकी नामों से खबर कि शक्ल में विज्ञापनों कस प्रसारण,निर्मल बाबा जैसे कथित संतों को प्राइम टाइम का समय बेचना जैसे कई और भी सवाल हैं जो मीडिया कि विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा रहे हैं जो अपरोक्ष तौर पर मीडिया की आज़ादी के हनन का कारण भी बन सकते हैं.  

मंगलवार, 3 नवंबर 2015

सात दैत्यों का खात्मा कर रहा है एक योद्धा...!!!


मानव आबादी के लिए खतरा बन गए सात दैत्यों से निपटने के लिए अब एक योद्धा ने कमर कस ली है और वह एक एक कर नहीं बल्कि एक साथ इन सात जानलेवा दैत्यों का खात्मा कर कर रहा है. अब तक इन दैत्यों से निपटने के लिए निजी तौर पर कई रक्षक तत्पर दीखते थे लेकिन वे बचाने की बजाए लूटने में ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहे थे लेकिन सही समय पर सरकार की ओर से मैदान में उतरा गया यह योद्धा न केवल बहुमूल्य प्राण बचा रहा है बल्कि जेब पर भी हमला नहीं करता. आइए, अब जानते हैं मानव सभ्यता के लिए खतरा बन गए सात दैत्यों के बारे में. ये दैत्य हैं- डिपथीरियाकाली खांसीटिटनेसपोलियो, टीबीखसरा और हेपटाइटिस-बी जैसी सात घातक बीमारियाँ जो हमारे नवजात बच्चों की नन्ही सी जान पर आफ़त बनकर टूट पड़े हैं. इन्हें बचाने के लिए सरकार ने इन्द्रधनुष नामक जिस योद्धा को मैदान में उतारा है वह दिल्ली से लेकर दीमापुर और महाराष्ट्र से लेकर मणिपुर तक अकेले ही इन दैत्यों से जूझ रहा है.
महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा को लेकर समय समय पर विशेष अभियान चलाये जाते रहे हैं. इसी श्रंखला में केन्द्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने 25 दिसंबर 2014 से मिशन इन्द्रधनुष शुरू हुआ है. इस अभियान का लक्ष्य 2020 तक देश के सभी बच्चों को इन घातक बीमारियों से बचाना है. पहले चरण में उन 201 जिलों को शामिल किया गया था जहाँ टीकाकरण 50 फीसदी से कम है. वैसे तो देश भर के लिए इस अभियान का महत्त्व है लेकिन असम और पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों के लिए खासतौर पर यह अभियान मायने रखता है क्योंकि यहाँ नवजात शिशुओं कि मृत्य दर राष्ट्रीय औसत से बहुत ज्यादा है. यही कारण है कि पूरे देश के साथ असम के 18 जिलों में भी मिशन इन्द्रधनुष पर अमल शुरू हो गया है। इस अभियान के दूसरे चरण में राज्य के दो साल से कम आयु के तक़रीबन दो लाख बीस हज़ार बच्चों को सात घातक बीमारियों से सुरक्षित करने के लिए टीके लगाए जाएंगे. गौरतलब है कि मिशन इंद्रधनुष का लक्ष्य इस आयु वर्ग के बच्चों को डिपथीरियाकाली खांसीटिटनेसपोलियो, टीबीखसरा और हेपटाइटिस-बी जैसी जानलेवा बीमारियों से बचाना है। टीकाकरण के लिए जगह-जगह विशेष चिकित्सा दल तैनात किये गए है।
इस अभियान के पहले चरण में असम के आठ जिलों करीमगंज, हैलाकांदी, धुबड़ी, बोंगईगाँव, कोकराझार, नगांव, दरांग और ग्वालपाड़ा के 27 हजार बच्चों का टीकाकरण किया गया था। अब सिर्फ कार्बी आंग लांग जिले को छोड़कर पूरे असम में मिशन इंद्र धनुष लागू कर दिया  गया है।
मिशन इन्द्रधनुष के दूसरे चरण में देश भर से 352 जिलों को चयनित किया गया है जिसमें 279 जिले मध्य प्राथमिकता वाले तथा 33 ज़िले उत्तर-पूर्वी राज्यों के हैं. इनमें भी सबसे ज्यादा जिले असम के हैं. दूसरा चरण 7 अक्टूबर से शुरू होकर एक सप्ताह तक चला। इसके बाद अगले तीन महीनों तक एक - एक सप्ताह के लिए लगातार सघन टीकाकरण अभियान चलाया जाएगा, जो 7 नवंबर, 7 दिसंबर और अगले वर्ष 7 जनवरी से शुरू होगा।

बताया जाता है कि जिलों के चयन में उच्च जोखिम वाली उन बस्तियों का खास ध्यान रखा गया है, जहां भौगोलिक, जनसांख्यिकीय, जातीय और अन्य परिचालन चुनौतियों की वजह से टीकाकरण का कवरेज बहुत कम है। इनमें खानाबदोश, सड़कों पर काम कर रहे प्रवासी मजदूर, निर्माण स्थलों, नदी खनन क्षेत्रों, ईंट भट्टों पर काम करने वाले, दूरस्थ और दुर्गम भौगोलिक क्षेत्रों और शहरी मलिन बस्तियों में रहने वाले लोग तथा वन और जनजातीय क्षेत्रों में रहने वाले लोग शामिल हैं।


अलौलिक के साथ आधुनिक बनती अयोध्या

कहि न जाइ कछु नगर बिभूती।  जनु एतनिअ बिरंचि करतूती॥ सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी॥ तुलसीदास जी ने लिखा है कि अयोध्या नगर...