रविवार, 21 अगस्त 2011

तो क्या अब इंसान बनाएगा ‘रेडीमेड’ और ‘डिजाइनर’ बच्चे...!

भविष्य में इंसान यदि अपने आपको भगवान घोषित कर दे तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि उसने अपनी नई और अनूठी खोजों से भगवान की सत्ता को ही सीधी चुनौती दे दी है.किराए की कोख और परखनली शिशु(टेस्ट ट्यूब बेबी) के बाद अब तो वैज्ञानिकों ने बच्चे के आकार-प्रकार में भी परिवर्तन करना शुरू कर दिया है.इसका मतलब है कि अब हर बैठे डिजाइनर और रेडीमेड बच्चे पैदा किया सकेंगे.इसीतरह अपने परिवार के किसी खास सदस्य को भी फिर से बच्चे के रूप में पैदा किया जा सकेगा.यही नहीं इस दौरान उस व्यक्ति की कमियों को दूर कर उसे पहले से बेहतर बनाकर जन्म दिया जा सकेगा.यदि इसमें कापीराइट या पेटेन्ट जैसी कोई बाधा नहीं आई तो घर-घर में आइंस्टीन,महात्मा गाँधी,हिटलर,विवेकानंद,नेल्सन मंडेला,अमिताभ बच्चन,मर्लिन मुनरो,दाउद इब्राहिम या इसीतरह के अन्य नामी-बदनाम व्यक्तियों को बच्चे के रूप में पाया जा सकेगा.
                    अब तक तो हमने देश-विदेश में राजाओं के नामों में दुहराव के बारे में खूब सुना है जैसे हमारे देश में बाजीराव प्रथम,बाजीराव द्वितीय या इंग्लैंड में विलियम वन,विलियम टू,हेनरी प्रथम,द्वितीय एवं तृतीय.लेकिन सोचिये यदि इनके नाम ही नहीं बल्कि रंग-रूप,चरित्र और चेहरा-मोहरा भी एक समान हो जाए तो क्या होगा? देश में सैकड़ों साल तक एक ही बाजीराव या विलियम या हेनरी का शासन बना रहेगा.कांग्रेस में इंदिरा युग,भाजपा में वाजपेयी-आडवानी या लालूप्रसाद,मुलायन,पासवान जैसे नेता अनंत काल तक बने रहेंगे.सरकारों को भी किसी जेपी,अन्ना हजारे या स्वामी रामदेव के आमरण अनशन से डरने की जरुरत नहीं होगी क्योंकि एक अन्ना के बाद दूसरा अन्ना और एक रामदेव के बाद दूसरा रामदेव तैयार किया जा सकेगा.
                                  दरअसल यह संभव हो रहा है वैज्ञानिकों द्वारा डीएनए में किये गए बदलाव से और यह बदलाव भी ऐसा कि कुदरत के करिश्मे को ही पीछे छोड़ दिया गया है.हार्वर्ड विश्वविद्यालय के एक जीवशास्त्री ने चूजे के डीएनए में परिवर्तन कर उसकी चोंच को घड़ियालों में पाए जाने वाले थूथन का सा बना दिया है.सामान्य भाषा में इसे घड़ियाल के मुंह वाला चूजा कहा जा सकता है.इसके लिए मुर्गी के अण्डों में एक छेद कर भ्रूण विकसित होने से पहले जिलेटिन जैसे प्रोटीन का एक छोटा सा दाना डाल दिया गया और चूजा घड़ियाल के मुंह वाला हो गया. अब वैज्ञानिकों का दावा है कि डीएनए परिवर्तन में मिली इस सफलता के जरिये मानव शिशुओं में भी जन्म से पहले बदलाव लाये जा सकते हैं.इस उपलब्धि का एक अच्छा पहलू तो यह है कि इससे शिशुओं की जन्मजात विकृतियों को गर्भ में ही ठीक किया जा सकेगा और कोई भी शिशु मानसिक या शारीरिक विकृति के साथ जन्म नहीं लेगा.
                               इस उपलब्धि के सदुपयोग से ज्यादा दुरूपयोग की आशंका है.इसी मामले में देखे तो घड़ियाल के मुंह वाला चूजा अब दाना चुगने तक को तरस जायेगा. यदि मानव के साथ ऐसा हुआ तो सोचिये मानव संरचना के साथ क्या-क्या और किस हद तक खिलवाड नहीं हो सकता है.कुदरत द्वारा वर्षों के परिश्रम के बाद तैयार संतुलित मानव शरीर को पैसे,शक्ति और शोध के दम पर कोई भी व्यक्ति मनचाहा रूप दे सकेगा.यह बात भले ही अभी दूर की कौड़ी लगे लेकिन हो सकता है भविष्य में फिर कोई हिटलर,सद्दाम या इन्हीं की तरह का तानाशाह रोबोट की तरह काम करने वाले मानवों की फौज तैयार कर ले या दुनिया पर हुकूमत का सपना देख रहा कोई सिरफिरा कुदरत पर इस जीत को मानव सभ्यता के लिए अभिशाप में बदल दे.

रविवार, 14 अगस्त 2011

आज़ादी का जश्न या डरपोक-भयभीत लोगों का एक दिन....!


जगह-जगह ए के-४७ जैसी घातक बंदूकों के साथ रास्ता रोककर तलाशी लेते दिल्ली पुलिस के सिपाही, सड़कों पर दिन-रात गश्त लगाते कमांडो, रात भर कानफोडू आवाज़ के साथ सड़कों पर दौड़ती पुलिस की गाडियां, फौजी वर्दी में पहरा देते अर्ध-सैनिक बलों के पहरेदार, होटलों और गेस्ट-हाउसों में घुसकर चलता तलाशी अभियान और पखवाड़े भर पहले से अख़बारों-न्यूज़ चैनलों और दीवारों पर चिपके पोस्टरों के माध्यम से आतंकवादी हमले की चेतावनी देती सरकार.....ऐसा नहीं लग रहा जैसे देश पर किसी दुश्मन राष्ट्र की नापाक निगाहें पड गई हों लेकिन घबराइए मत क्योंकि न तो दुश्मन ने हमला किया है और न ही देश किसी मुसीबत में है बल्कि यह तो हमारे राष्ट्रीय पर्व स्वतन्त्रता दिवस पर की जा रही तैयारियां हैं.
   किसी भी मुल्क के लिए शायद इससे बड़ा दिन और कोई हो ही नहीं सकता क्योंकि गुलामी की जंजीरों को तोड़कर,लाखों-करोड़ों कुर्बानियों और कई पीढ़ियों के सतत संघर्ष के बाद हासिल स्वतन्त्रता की सालगिरह के जश्न से बढ़कर और क्या हो सकता है?लेकिन क्या छह दशक के बाद हम अपने आपको आज़ाद कह सकते हैं?क्या आसमान में उड़ते परिंदे,कलकल बहती नदियों और तन-मन को छूकर गुजरती सरसराती हवा के मानिंद आज़ाद हैं हम?बचपन में अलसुबह खुशी-खुशी नारे लगाती प्रभात फेरी वालों की टोली अब कहीं नज़र आती है और क्या हम अपने परिजनों को निडरता से लाल किले पर होने वाले समारोह में जाने दे सकते हैं?या किसी भी महानगर खासतौर पर दिल्ली में स्वतन्त्रता दिवस से डरावना दिन और कोई होता है क्योंकि इस दिन के पखवाड़े भर पहले से कई दिन बाद तक आतंकी हमलों का भय बना रहता है.   
     लोकतंत्र यानी जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा....इसीतरह स्वतंत्रता दिवस अर्थात जनता का राष्ट्रीय पर्व पर क्या आम जनता अपने इस राष्ट्रीय त्यौहार को उतने ही उत्साह के साथ मना पाती है जितने उत्साह से देश में होली,दिवाली,क्रिसमस और ईद जैसे धार्मिक-सामाजिक पर्व मनाये जाते हैं? राष्ट्रीय पर्व को उत्साह से मनाना तो दूर उलटे जनता से अपेक्षा की जाती है कि वह इस दिन आपने घर से ही न निकले और यदि देश भर से कुछ हज़ार लोग इस राष्ट्रीय पर्व का आनंद उठाने के लिए सड़कों पर निकलते हैं तो उन्हें बंद रास्तों, छावनी बनी दिल्ली और दिल तोड़ देने वाली पुलिसिया तलाशी से इतना परेशान होना पड़ता है कि भविष्य में वे भी तौबा करना ही उचित समझते हैं. असलियत में देखा जाये तो धार्मिक-सामाजिक उत्सवों की हमारे देश में कोई कमी नहीं है जबकि राष्ट्रीय पर्व महज गिनती के हैं.वैसे भी स्वतन्त्रता दिवस का अपना अलग ही महत्त्व है. करोड़ो रुपये में होने वाले आज़ादी के इस जलसे का उत्साह मीडिया में तो खूब नज़र आता है क्योंकि विज्ञापनों से पन्ने भरे रहते हैं, स्वतन्त्रता दिवस की तैयारियों की खबरों से पन्ने रंग जाते हैं परन्तु आम जनता जिसके लिए यह सारा ताम-झाम होता है वह इससे महरूम ही रह जाती है. बस उसे अखबार पढ़कर और न्यूज़ चैनलों के चीखते-चिल्लाते और डराने का प्रयास करते एंकरों के जरिये इस आयोजन में भागीदारी निभानी पड़ती है. अब तो टीवी पर बढ़ती चैनलों की भीड़ ने लोगों को घर पर भी आज़ादी के जश्न का मज़ा लेने की बजाये इस दिन आने वाले मनोरंजक कार्यक्रमों और छोटे परदे पर बड़ी फिल्मों को देखने का लालच देना शुरू कर दिया है इसलिए घर बैठकर राष्ट्रीय पर्व मनाने की परंपरा दम तोड़ने लगी है.ऐसा न हो कि इस लापरवाही के चलते हमारा यह सबसे पावन पर्व अपनी गरिमा खोकर सरकारी औपचारिकता बनकर रह जाए और भविष्य की पीढ़ी को इस आयोजन के लिए वीडियो देखकर ही काम चलाना पड़े...? तो आइये आपने इस महान पर्व को बचाएं और इस बार खुलकर स्वतन्त्रता दिवस मनाये और घर घर राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा लहराएँ ताकि इस आयोजन को बर्बाद करने के मंसूबे पाल रहे लोगों के मुंह पर भी हमेशा के लिए ताला लगाया जा सके...

सोमवार, 8 अगस्त 2011

यहाँ पुरुष ,महिला है और बूढ़ा, सजीला जवान

इंटरनेट के आभाषी(वर्चुअल) गुण के कारण तमाम सोशल नेटवर्किंग साइट हमें एक आभाषी दुनिया का हिस्सा तो बना रही है परन्तु वास्तविक दुनिया से दूर भी कर रही हैं. यहाँ सब-कुछ नकली है,लोगों के नाम,उम्र,पता,फोटो और खासतौर पर लिंग सब झूठे होते हैं.यहाँ पुरुष सामान्तया महिला बनकर और महिलाएं पुरुष बनकर मिलती हैं.पचास साल का व्यक्ति या तो स्वयं को नौजवान दिखायेगा या फिर आयु छिपाने के लिए अपने जन्म का साल ही नहीं लिखेगा.इस सबसे बढ़कर बात यह है कि यहाँ मौजूद लोग अपनी जवानी के दिनों की फोटो लगाए नज़र आते हैं और यदि बदकिस्मती से जवानी में भी खुदा ने नूर नहीं बख्शा था तो फिर किसी फिल्मी सितारे का मुखौटा लगाना तो सबसे आसान है.यदि आपके पास एक अदद सुन्दर-जवान चेहरा और महिला का अच्छा सा नाम है तो फिर आपके पास सोशल नेटवर्किंग साइट पर दोस्तों की लाइन लग जायेगी.महिला द्वारा लिखे गए “उफ़ आज सोमवार है”जैसे फालतू ‘स्टेटस’ पर भी टिपण्णी करने वालों की लाइन लग जायेगी और “लाइक’ करने वाले तो सैकड़ों में होंगे लेकिन यदि आप जवानी तथा खूबसूरत महिला होने जैसी खूबियों से लबरेज नहीं हैं तो विद्वान होने के बाद भी शायद आपकी तथ्यपरक बातों को प्रशंसा हासिल करने के यहाँ तरशना पड सकता है क्योंकि यहाँ नकली,बनावटीपन और झूठ भरपूर बिकता है.आखिर बिके भी क्यों नहीं जब यह दुनिया ही नकली है.
                  इस दुनिया के नकलीपन की असलियत यह है कि यहाँ “मेरे पिताजी का निधन हो गया है” जैसी असली खबर को लोग ‘लाइक’ कर लेते हैं और दिखावा इतना कि लंच में दफ़्तर में बैठा एक व्यक्ति इंटरनेट पर अपने ही दफ़्तर के दूसरे या फिर एक साथ कई सहकर्मियों के साथ बिना बोलेइं वेबसाइटों के जरिये बतियाना ज्यादा पसंद करता है,पति अपनी ही पत्नी(वैसे दूसरों की पत्नियों से ज्यादा) से और माँ अपने बच्चों से नेट पर गपिया रही है,दोस्तों का तो पूछिए ही मत वे तो आमने सामने बैठकर भी लैपटाप या मोबाइल पर नेट के जरिये चेटिंग करते दिखाई देंगे और प्रेमी जोड़ों के लिए तो यह भगवान का वरदान है.दरअसल में यह इंटरनेट की दुनिया है तो असली रिश्तों को बनावटीपन का नया आयाम दे रही है.
                               इस बनावटी दुनिया के नशे का यह आलम है कि सुबह से शाम तक कम्प्यूटर पर आँखे गडाये, बिजली गुल हो जाने पर मोबाइल फोन के नेट पर टूट पड़ने वाले, अपने आप में हँसते-परेशान होते और फिर सभी को अपने प्रशंसकों की संख्या एवं टिप्पणियों से अवगत करते लोगों को आप अपने घर,पड़ोस या फिर आस-पास कभी भी कही भी देख सकते हैं.ऐसे लोग बिलकुल अलग नज़र आते हैं जो आमतौर पर खुद में खोये लगेंगे और घर,दफ्तर,बस,मेट्रो जैसी तमाम निजी और सार्वजनिक जगहों पर भरपूर मात्रा में मिलेंगे.
                               दरअसल,इन्टरनेट इन दिनों सामाजिक और पारिवारिक सम्बन्ध निभाने,अपना सुख-दुःख बाँटने और एक –दूसरे की विद्वता के कसीदे काढ़ने का सबसे बड़ा अड्डा बन गया है. सबसे उम्दा सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट कहलाने वाली फेसबुक और ट्विटर,हाई फाइव,आरकुट,लिंक्डइन,माय स्पेस,माय इयरबुक,मीटअप,निंग,टेग्ड,माय लाइफ ,फ्रेंडस्टर जैसे विविध नाम वाली उसकी संगी-साथी वेबसाइटों ने एक ऐसी दुनिया बना दी है जिसमें समाहित होने को लोग बेताब हैं.लेकिन ये दुनिया कितनी झूठी,खोखली और बनावटी है इसका आभाष इस दुनिया का हिस्सा बनकर ही पता चलता है. वास्तविकता यह है कि सामाजिक रिश्ते-नाते बढ़ाने का दावा करने वाली ये तमाम वेबसाइट लोगों को समाज से ही दूर कर रही हैं और हम सब नकली आवरण ओढे तथा आकर्षक मुखौटे लगाकर इस दुनिया में अपनी असलियत खोने को बेताब हैं.

अलौलिक के साथ आधुनिक बनती अयोध्या

कहि न जाइ कछु नगर बिभूती।  जनु एतनिअ बिरंचि करतूती॥ सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी॥ तुलसीदास जी ने लिखा है कि अयोध्या नगर...