शनिवार, 7 सितंबर 2013

गजानन, अब के बरस तुम मत आना.....!


     हे गजानन,रिद्धि-सिद्धि और बुद्धि के दाता गणेश आप अगले साल मत आना, भले ही आपके भक्त ‘गणपति बप्पा मोरिया अगले बरस तू जल्दी आ’ जैसे कितने भी जयकारे लगाते रहे. चाहे वे आपको मोदक का कितना भी लालच दें लेकिन आप उनके बहकावे में मत आना. ऐसा नहीं है कि आपके आने से मुझे कोई ख़ुशी नहीं है या फिर मुझे आपकी कृपा की लालसा नहीं है. धन-संपत्ति और प्रसिद्धि भला किसे बुरी लगती हैं लेकिन मैं अपने स्वार्थ के लिए अपनी माँ को कष्ट में नहीं देख सकता. आपको खुश करने के चक्कर में आपके कथित भक्त तमाम विधि-विधान को भूलकर अंध श्रद्धा का ऐसा दिखावा करते हैं कि मेरी माँ तो माँ उनकी सभी छोटी-बड़ी बहनों का सीना छलनी हो जाता है और वे महीनों बाद भी दर्द से कराहती रहती हैं.
     अब तो प्रभु आप भी समझ गए होंगे कि मुझे आप और आपकी आराधना से नहीं बल्कि आपकी वंदना के नाम पर होने वाले दिखावे पर आपत्ति है. मुझे आपकी कई फुट ऊँची रसायनिक रंगों से सजी-संवरी प्लास्टर ऑफ़ पेरिस की मूर्तियों और उनके नदियों में विसर्जन से शिकायत है. प्लास्टर ऑफ़ पेरिस में जिप्सम, फास्फोरस,सल्फर और मैग्नीशियम जैसे रसायन होते हैं, वहीँ आपकी प्रतिमाओं को सुन्दर दिखाने के लिए लगाए गए लाल,नीले,नारंगी,हरे, पीले जैसे सतरंगी रंग के रसायनिक पेंट तो लेड,कार्बन,मरकरी,जिंक जैसे ख़तरनाक तत्वों के मेल से बनते हैं. जब ये हानिकारक रसायन गंगा माँ और उनकी यमुना,नर्मदा,बेतवा,चम्बल ताप्ती,ब्रम्हपुत्र जैसी बहनों के पवित्र जल में समाते हैं तो इस ज़हर से उनके आँचल में पल रहे निर्दोष जलीय जीव-जंतु तक दम तोड़ देते हैं और यह पानी पीने लायक तो दूर नहाने और छूने लायक भी नहीं रह जाता. इससे आपके भक्तों में ही कैंसर जैसी घातक बीमारियों का खतरा उत्पन्न हो रहा है. पहले ही प्रदूषण के बोझ से बेदम हमारे जल स्रोत हर साल आपकी हज़ारों-लाखों छोटी-बड़ी प्रतिमाओं के विसर्जन से मरणासन्न स्थिति में पहुँच जाते हैं.
    आपके भक्त इतना जानते हैं कि प्लास्टर ऑफ़ पेरिस पानी में आसानी से नहीं घुलता और इससे आपके विसर्जन की प्रक्रिया भी पूरी नहीं हो पाती फिर भी वे पैसे बचाने और एक-दूसरे से बढ़-चढ़कर दिखने की होड़ में जान-बूझकर बड़ी,सस्ती और रंग-बिरंगी प्रतिमाएं लेकर आते हैं. केन्द्रीय प्रदूषण बोर्ड का कहना है कि विसर्जन के बाद पूरी तरह से नहीं गलने वाली प्रतिमाओं को इकठ्ठा कर उन पर बुल्डोज़र चलाना पड़ता है. तब जाकर वे किसी तरह मिट्टी में मिल पाती हैं. अब सोचिए,ग्यारह दिन तक भरपूर आराधना करने के बाद क्या ऐसा विसर्जन आपको रास आएगा? क्या यह आपका अपमान नहीं है?
    वेद-पुराणों में तो बताया गया है कि गणेश प्रतिमा को सदैव शुद्ध कच्ची मिट्टी से ही बनाया जाना चाहिए और यदि रंग करना वाकई जरुरी है तो केवल प्राकृतिक रंगों का ही इस्तेमाल होना चाहिए. धार्मिक ग्रंथों में तो आपकी प्रतिमा का आकार भी निर्धारित है फिर भी आज के दौर के कथित भक्तों में ऊँची-ऊँची विशालकाय प्रतिमाएं बनवाने की होड़ मची है. हर साल आपकी नयी प्रतिमा बनवाकर पूजने का क्या तुक है? क्या आपकी स्थायी मूर्ति आशीर्वाद और कृपा नहीं बरसाती? यदि ऐसा होता तो मुंबई में सिद्धिविनायक, उज्जैन के चिंतामन गणेश, इंदौर के खजराना गणेश जैसे तमाम स्थायी प्रतिमाओं वाले आपके दरबार में इतनी भीड़ क्यों जुटती है और भक्त पूरी तरह से संतुष्ट होकर बार-बार क्यों आते हैं? इसलिए प्रभु जब तक लोग पर्यावरण और विधि-विधान का ध्यान रखते हुए आपका आह्वान न करें आप मत आना और यदि फिर भी आना ही पड़े तो ऐसे कथित भक्तों पर जरा भी कृपा मत बरसाना ताकि वे भी आपके सम्मान का सही तरीका सीख सकें.        

अलौलिक के साथ आधुनिक बनती अयोध्या

कहि न जाइ कछु नगर बिभूती।  जनु एतनिअ बिरंचि करतूती॥ सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी॥ तुलसीदास जी ने लिखा है कि अयोध्या नगर...